नमः संस्कृताय मित्राणि !
लकारों के क्रम में लिङ् लकार के विषय में समझाते हुए हमने इसके दो भेदों का उल्लेख किया था- विधिलिङ् और आशीर्लिङ्। विधिलिङ् लकार के प्रयोग के नियम तो आपने जान लिये। अब आशीर्लिङ् के विषय में बताते हैं। आपने यह वेदमन्त्र तो कभी न कभी सुना ही होगा –
मधुमन्मे निष्क्रमणं मधुमन्मे परायणम्।
वाचा वदामि मधुमद् ‘भूयासं’ मधुसंदृशः॥
( मेरा जाना मधुर हो, मेरा आना मधुर हो। मैं मधुर वाणी बोलूँ, मैं मधु के सदृश हो जाऊँ। अथर्ववेद १।३४।३॥ )
इसमें जो ‘भूयासम्’ शब्द है, वह भू धातु के आशीर्लिङ् के उत्तमपुरुष एकवचन का रूप है। भू धातु के आशीर्लिङ् में रूप देखिए –
भूयात् भूयास्ताम् भूयासुः
भूयाः भूयास्तम् भूयास्त
भूयासम् भूयास्व भूयास्म
१) इस लकार का प्रयोग केवल आशीर्वाद अर्थ में ही होता है। महामुनि पाणिनि जी ने सूत्र लिखा है – “आशिषि लिङ्लोटौ।३।३।१७२॥” अर्थात् आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार और लोट् लकार का प्रयोग करते हैं। जैसे – सः चिरञ्जीवी भूयात् = वह चिरञ्जीवी हो।
२) इस लकार के प्रयोग बहुत कम दिखाई पड़ते हैं, और जो दिखते भी हैं वे बहुधा भू धातु के ही होते हैं। अतः आपको भू धातु के ही रूप स्मरण कर लेना है बस।
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शब्दकोश :
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‘गर्भवती’ के पर्यायवाची शब्द –
१) आपन्नसत्त्वा
२) गुर्विणी
३) अन्तर्वत्नी
४) गर्भिणी
५) गर्भवती
पतिव्रता स्त्री के पर्यायवाची-
१) सुचरित्रा
२) सती
३) साध्वी
४) पतिव्रता
स्वयं पति चुनने वाली स्त्री के लिए संस्कृत शब्द –
१) स्वयंवरा
२) पतिंवरा
३) वर्या
वीरप्रसविनी – वीर पुत्र को जन्म देने वाली
बुधप्रसविनी – विद्वान् को जन्म देने वाली
उपर्युक्त सभी शब्द स्त्रीलिंग में होते हैं।
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वाक्य अभ्यास :
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यह गर्भिणी वीर पुत्र को उत्पन्न करने वाली हो।
= एषा आपन्नसत्त्वा वीरप्रसविनी भूयात्।
ये सभी स्त्रियाँ पतिव्रताएँ हों।
= एताः सर्वाः योषिताः सुचरित्राः भूयासुः।
ये दोनों पतिव्रताएँ प्रसन्न रहें।
= एते सुचरित्रे मुदिते भूयास्ताम्।
हे स्वयं पति चुनने वाली पुत्री ! तू पति की प्रिय होवे।
= हे पतिंवरे पुत्रि ! त्वं भर्तुः प्रिया भूयाः।
तुम दोनों पतिव्रताएँ होवो ।
= युवां सत्यौ भूयास्तम् ।
वशिष्ठ ने दशरथ की रानियों से कहा –
= वशिष्ठः दशरथस्य राज्ञीः उवाच –
तुम सब वीरप्रसविनी होओ।
= यूयं वीरप्रसविन्यः भूयास्त ।
मैं मधुर बोलने वाला होऊँ।
= अहं मधुरवक्ता भूयासम्।
सावित्री ने कहा –
सावित्री उवाच
मैं स्वयं पति चुनने वाली होऊँ।
= अहं वर्या भूयासम्।
माद्री और कुन्ती ने कहा –
माद्री च पृथा च ऊचतुः –
हम दोनों वीरप्रसविनी होवें।
= आवां वीरप्रसविन्यौ भूयास्व ।
हम सब राष्ट्रभक्त हों।
वयं राष्ट्रभक्ताः भूयास्म ।
हम सब चिरञ्जीवी हों।
= वयं चिरञ्जीविनः भूयास्म।
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श्लोक :
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एकः स्वादु न भुञ्जीत नैकः सुप्तेषु जागृयात्।
एको न गच्छेत् अध्वानं नैकः चार्थान् प्रचिन्तयेत्॥
(पञ्चतन्त्र)
स्वादिष्ट भोजन अकेले नहीं खाना चाहिए, सोते हुए लोगों में अकेले नहीं जागना चाहिए, यात्रा में अकेले नहीं जाना चाहिए और गूढ़ विषयों पर अकेले विचार नहीं करना चाहिए।
इस श्लोक में जितने भी क्रियापद हैं वे सभी विधिलिङ् लकार प्रथमपुरुष एकवचन के हैं।
॥ शिवोऽवतु ॥