एकान्ते सुखमास्यतां परतरे चेतः समाधीयतां
पूर्णात्मा सुसमीक्ष्यतां जगदिदं तद्वाधितं दृश्यताम्।
प्राक्कर्म प्रविलाप्यतां चितिबलान्नाप्युत्तरैः श्लिश्यतां
प्रारब्धं त्विह भुज्यतामथ परब्रह्मात्मना स्थीयताम्॥५॥
एकांत के सुख का सेवन करें, परब्रह्म में चित्त को लगायें, परब्रह्म की खोज करें, इस विश्व को उससे व्याप्त देखें, पूर्व कर्मों का नाश करें, मानसिक बल से भविष्य में आने वाले कर्मों का आलिंगन करें, प्रारब्ध का यहाँ ही भोग करके परब्रह्म में स्थित हो जाएँ ॥५॥
Enjoy in solitude, meditate on the Lord, search for the Lord, see this world as pervaded by Him. Destroy the effects of the previous deeds, welcome the future with all your mental strength. Exhaust the remaining effects of past actions here and get established in the Lord ॥5॥
-साधन पंचकम्
शब्द सिन्धु
विषाण (vishhaaNa) = horns
विषादं (vishhaadaM) = moroseness
विषादि (vishhaadi) = morose
विषीदन् (vishhiidan.h) = while lamenting
विषीदन्तं (vishhiidantaM) = lamenting
विषुस्पृश (vishhuspRisha) = touched, tinged with poison (poison-tipped arrow?)
विषेशाधिकारः (vishheshaadhikaaraH) = (m) privilege
विषेषता (vishheshhataa) = difference
विषोपमेयं (vishhopameyaM) = poison-like
विष्टभ्य (vishhTabhya) = pervading
विष्ठितं (vishhThitaM) = situated
विष्णु (vishhNu) = the preserver of life
विष्णुः (vishhNuH) = the Lord MahaavishhNu
विष्णुत्वं (vishhNutvaM) = the quality/state of Brahman/god-realisation
विष्णो (vishhNo) = O Lord Visnu
विष्लेषण (vishhleshhaNa) = analysis
विसंमोहन (visaMmohana) = infatuation
विसर्गः (visargaH) = creation
विसृजन् (visRijan.h) = giving up
विसृजामि (visRijaami) = I create
विसृज्य (visRijya) = putting aside
विस्तरः (vistaraH) = the expanse
विस्तरशः (vistarashaH) = in detail
विस्तरस्य (vistarasya) = to the extent
विस्तरेण (vistareNa) = in detail
विस्तारं (vistaaraM) = the expansion
विस्तारः (vistaaraH) = (m) amplitude
विस्तारित (vistaarita) = expanded
विस्फुरणै (visphuraNai) = by emanation
विस्मयः (vismayaH) = wonder
विस्मयपदं (vismayapadaM) = object of wonder
विस्मयाविष्टः (vismayaavishhTaH) = being overwhelmed with wonder
विस्मिताः (vismitaaH) = in wonder
विहग (vihaga) = bird
विहगः (vihagaH) = Bird, cloud, arrow, sun, moon, a planet in general, some thing that moves in the sky
विहाय (vihaaya) = giving up
विहार (vihaara) = in relaxation
विहारस्य (vihaarasya) = recreation
विहारिणि (vihaariNi) = one who strolls
विहिआ (vihiaa) = vihitA?, understood
विहित (vihita) = prescribed
विहितं (vihitaM) = directed
विहिताः (vihitaaH) = used
विहितान् (vihitaan.h) = arranged
विहीन (vihiina) = without
विहीना (vihiinaa) = bereft
विहृ (vihRi) = to roam
विक्षिप्त (vikShipta) = mental aggitation
विक्षेप (vikShepa) = confusion
विज्ञातं (viGYaataM) = has been known
विज्ञातुं (viGYaatuM) = to know
विज्ञान (viGYaana) = comprehension, Science
विज्ञानं (viGYaanaM) = numinous knowledge
विज्ञानमय (viGYaanamaya) = full of greater(scientific in a way) knowledge
विज्ञानी (viGYaanii) = scientist
विज्ञाय (viGYaaya) = after understanding
पाठ
लोकोक्ति
बहुत अधिक प्रचलित और लोगों के मुँहचढ़े वाक्य लोकोक्ति के तौर पर जाने जाते हैं। इन वाक्यों में जनता के अनुभव का निचोड़ या सार होता है। इनकी उत्पत्ति एवं रचनाकार ज्ञात नहीं होते।
पाषाणादिष्टिका वरा।
पिण्डे पिण्डे मतिर्भिन्ना|
पिण्डेन ब्रह्माण्डपरीक्षणं स्यात्।
पुरुषकारम् अनुवर्तते दैवम्।
पुरुषार्थहीना: भुवि भारभूता:|
सुभाषित
अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च |
पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ||
If a fire, a loan, or an enemy continues to exist even to a small extent, it will grow again and again; so do not let any one of it continue to exist even to a small extent. यदि कोई आग, एक ऋण, या एक शत्रु अस्तित्व ही रहेगी को भी एक छोटी-सी सीमा तक, इससे बार-बार बढ़ने; अत: ऐसा न होने दीजिए यह किसी एक के अस्तित्व को जारी करने के लिए भी एक छोटी-सी हद तक ।
For next few days, we will focus on शंकर भाष्य
मूल श्लोकः
मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्।
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।।14.3।।
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।14.3।। –,मम स्वभूता मदीया माया त्रिगुणात्मिका प्रकृतिः योनिः सर्वभूतानां कारणम्। सर्वकार्येभ्यो महत्त्वात् भरणाच्च स्वविकाराणां महत् ब्रह्म इति योनिरेव विशिष्यते। तस्मिन् महति ब्रह्मणि योनौ गर्भं हिरण्यगर्भस्य जन्मनः बीजं सर्वभूतजन्मकारणं बीजं दधामि निक्षिपामि क्षेत्रक्षेत्रज्ञप्रकृतिद्वयशक्तिमान् ईश्वरः अहम्? अविद्याकामकर्मोपाधिस्वरूपानुविधायिनं क्षेत्रज्ञं क्षेत्रेण संयोजयामि इत्यर्थः। संभवः उत्पत्तिः सर्वभूतानां हिरण्यगर्भोत्पत्तिद्वारेण ततः तस्मात् गर्भाधानात् भवति हे भारत।।