प्राणका प्रेरक कौन?
केन उपनिषद् में प्राण प्रेरककी बात है| सम्पूर्ण जगत प्राण आधीन है, पर प्राण किसके आधीन है?
राजाकी प्रेरणासे दीवान काम कर शकता है, उसी प्रकार, प्राणका प्राण कौन?
स उ प्राणस्य प्राण|
आत्मा|
राम – हनुमान
आत्मा – प्राण
शब्दसिन्धु
अटति (aTati) = (1 pp) to roam
अणीयांसं (aNiiyaa.nsaM) = smaller
अणु (aNu) = atom
अणोः (aNoH) = than the atom
अण्वस्त्रं (aNvastraM) = (n) nuclear weapon
अतः (ataH) = hence
अतत्त्वार्थवत् (atattvaarthavat.h) = without knowledge of reality
अतन्द्रितः (atandritaH) = with great care
अतपस्काय (atapaskaaya) = to one who is not austere
अति (ati) = extremely
अतिपरिचय (atiparichaya) = excessive familiarity
अतिवीर्यं (ativiiryaM) = super power
अतिचार (atichaara) = Accelerated planetary motion
अतितरन्ति (atitaranti) = transcend
अतितरलं (atitaralaM) = ati+tarala, very+unstable
अतिथि (atithi) = (m) guest
अतिथिः (atithiH) = (masc.Nom.sing.)guest (literally undated)
अतिदारूणमन् (atidaaruuNaman.h) = adj. very dreadful
अतिदुर्वृत्त (atidurvRitta) = of exceedingly bad conduct
पाठ
भोजनप्रकरणम्
नित्यः स्वाध्यायो जातो भोजनसमय आगतो गन्तव्यम् । | नित्य का पढ़ना हो गया, भोजन समय आया, चलना चाहिये । |
तव पाकशालायां प्रत्यहं भोजनाय किं किं पच्यते ? | तुम्हारी पाकशाला में प्रतिदिन भोजन के लिये क्या-क्या पकाया जाता है ? |
शाकसूपौदश्वित्कौदनरोटिकादयः । | शाक, दाल, कढ़ी, भात, रोटी आदि । |
किं वः पायसादिमधुरेषु रुचिर्नास्ति ? | क्या आप लोगों की खीर आदि मीठे भोजन में रुचि नहीं है ? |
अस्ति खलु परन्त्वेतानि कदाचित् कदाचित् भवन्ति । | है सही परन्तु ये भोजन कभी-कभी होते हैं । |
कदाचिच्छष्कुली-श्रीखण्डादयोऽपि भवन्ति न वा ? | कभी पूरी कचौड़ी शिखरन आदि भी होते हैं वा नहीं ? |
भवन्ति परन्तु यथर्त्तुयोगम् । | होते हैं परन्तु जैसा ऋतु का योग होता है वैसा ही भोजन बनाते हैं । |
सत्यमस्माकमपि भोजनादिकमेवमेव निष्पद्यते । | ठीक है हमारे भी भोजन आदि ऐसे ही बनते हैं । |
त्वं भोजनं करिष्यसि न वा ? | तू भोजन करेगा वा नहीं ? |
अद्य न करोम्यजीर्णतास्ति । | आज नहीं करता अजीर्णता है । |
अधिकभोजनस्येदमेव फलम् । | अधिक भोजन का यही फल है । |
बुद्धिमत्ता तु यावज्जीर्यते तावदेव भुज्यते । | बुद्धिमान पुरुष तो जितना पचता है उतना ही खाता है । |
अतिस्वल्पे भुक्ते शरीरबलम् ह्रस्त्यधिके चातः सर्वदा मिताहारी भवेत् । | बहुत कम और अत्यधिक भोजन करने से शरीर का बल घटता है, इससे सब दिन मिताहारी होवे । |
योऽन्यथाऽऽहारव्यवहारौ करोति स कथं न दुःखी जायेत ? | जो उलट-पलट आहार और व्यवहार करता है वह क्यों न दुःखी होवे ? |
येन शरीराच्छ्रमो न क्रियते स शरीरसुखं नाप्नोति । | जो शरीर से परिश्रम नहीं करता वह शरीर के सुख को प्राप्त नहीं होता । |
येनात्मना पुरुषार्थो न विधीयते तस्यात्मनो बलमपि न जायते । | जो आत्मा से पुरुषार्थ नहीं करता उसको आत्मा का बल भी नहीं बढ़ता । |
तस्मात्सर्वैर्मनुष्यैर्यथाशक्ति सत्क्रिया नित्यं साधनीयाः । | इससे सब मनुष्यों को उचित है यथाशक्ति उत्तम कर्मों की साधना नित्य करनी चाहिये । |
भो देवदत्त ! त्वामहं निमन्त्रये । | हे देवदत्त ! मैं तुमको भोजन के लिए निमन्त्रित करता हूं । |
मन्येऽहं कदा खल्वागच्छेयम् ? | मैं मानता हूँ परन्तु किस समय आऊँ ? |
श्वो द्वितीयप्रहरमध्ये आगन्तासि । | कल डेढ पहर दिन चढ़े आना । |
आगच्छ भो, आसनमध्यास्व, भवता ममोपरि महती कृपा कृता । | आप आइये, आसन पर बैठिये, आपने मुझ पर बड़ी कृपा की । |
अकारादिः सूक्तयः
- अग्ने: खरतरादेव लोहं दृढतरं भवेत्।
- अग्नेरभ्यागतो मूर्तिः ।
- अङ्गीकृतं सुकृतिनः परिपालयन्ति।
- अजो नित्यं शाश्वतोऽयं पुराणः ।
- अज्ञः सुखमाराध्यः ।
- अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
सुभाषित
गोष्पदी-कृत-वारीशं मशकी-कृत-राक्षसम् ।
रामायण-महामाला-रत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥
I make obeisance to the son of Vayu (the Wind God),
who tamed the vast ocean into a hoof-print (in
the mud), turned the demons into mosquitoes, and is
the gem in the great garland that the Ramayana is.
पठन/मनन/स्मरण
॥ श्रीहनूमत्स्तुती ॥
हनुमानञ्जनासूनुर्वायुपुत्रो महाबलः ।
रामेष्टः फाल्गुनसखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः ॥ १॥
Hanuman, Anjana’s son, the son of wind-god,
one endowed with great strength,
the favourite of Sri Rama, Arjuna’s friend,
one having reddish brown eyes and unlimited valour
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः ।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा ॥ २॥
The one who leapt across the ocean,
who dispelled the deep anguish of Sita,
the saviour of Laxmana and who destroyed the pride of Ravana
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः ।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत् ॥ ३॥
If one recites these twelve names of the noble Hanuman –
the best among the monkeys before retiring to bed,
on rising up in the morning or during journeys
तस्य सर्व भयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् ।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन ॥ ४॥
He will not face fear from any quarter. He will be successful in
battles. He need not have fear
either while entering the royal door, or a deep cavern.
(From Ananda Ramayana, Manohara Kanda.13-8-11).
॥ ॐ तत्सत् ॥
Encoded, proofread, and comments by
N. Balasubramanian bbalu at satyam.net.in