आगन्तु का अर्थ है आकस्मिक। आयुर्वेद में वायरल संक्रमण को आगन्तु माना जाता है। यदि पर्यावरण समय (काल) या स्थान (देश) के कारण रोगवाहकों (मच्छरों आदि द्वारा प्रसारित वायरस/प्रोटीन) से भरा है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप पीड़ित होंगे ही!
कोई एक काल में, व्यक्ति की जन्म कुंडली और अब तक के जीवन के आधार पर, रोगवाहक के प्रभाव में आनेवाले विशिष्ट स्थान अर्थात ख-वैगुण्य पर, केवल विशिष्ट % जनसंख्या ही आगंतु रोग से प्रभावित होगी! यहां वायरस वेक्टर पूरी तरह से संदेश मात्र हैं, बदलते समय (मौसम) और स्थान के बारे में संदेश डिकोडिंग जानकारी के अलावा कोई भूमिका नहीं निभाते हैं।
ख-वैगुण्य क्या है?
शरीर का वह निर्बल भाग के जहां प्रकोपित दोष रोग अवस्था उत्पन्न कर सकते है । ख-वैगुण्य जन्मजात हो सकते है या प्रज्ञा अपराध से भी निर्माण हो सकते है।
कुपितानां हि दोषाणां शरीरे परिधावताम् ।
यत्र संङ्ग खवैगुण्याद् व्याधिस्तत्रोपजायते।। (सु.सू. 24/10)
कुपित हुए दोष शरीर में फैलते हुए जहाँ स्त्रोतो में खवैगुण्य पाते हैं, वही रूक कर रोग के पूर्वरूप को उत्पन्न करते है।
रोग होना न होना, आतुर \ रोगी पर निर्भर है। अग्निबल पर है ।
आकस्मिक आगंतु बीमारियों से बचाव के लिए क्या महत्वपूर्ण है?
– परिवर्जन – ज्ञात जालों से परहेज (उदाहरण के लिए, मानसून की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत के दौरान भोग से परहेज)
– दिनचर्या – प्रतिदिन एक ही दिनचर्या का पालन करें
– ऋतुचर्या – मौसम के अनुसार दिनचर्या का पालन करें और बदलाव करें (मानसून के दौरान हल्का व्यायाम, सर्दियों के दौरान भारी व्यायाम)
-विरुद्ध आहार से बचें -असंगत भोजन -से बचें
– अग्नि दीपन एवं संरक्षण
– स्वस्थ और मजबूत संतान के लिए योजनाबद्ध गर्भधारण (अजन्मे बच्चे को आदर्श जन्म कुंडली की कल्पना करना और उपहार देना)
– आहार, दिनचर्या और आदतों से शक्ति
– होम और अन्य अनुष्ठानों द्वारा पर्यावरण शुद्धि, मानसून के दौरान उबला हुआ पानी
– मानसिक रूप से तनावमुक्त सामुदायिक जीवन
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कुछ तथ्य : सभी संक्रामक रोगों में से 17% से अधिक वेक्टर-जनित रोगों के कारण होते हैं, जिससे सालाना 1 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं।
100 से अधिक देशों में 2.5 अरब से अधिक लोगों को अकेले डेंगू होने का खतरा है।
मलेरिया के कारण विश्व स्तर पर हर साल 400,000 से अधिक मौतें होती हैं, जिनमें से अधिकांश 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे होते हैं।