I call गौमूत्र,गौमय (गोबर) & गौदुग्ध as प्रसाद.
प्रसादस्तु प्रसन्नता |
प्रसाद = That which brings जीव in state of प्रसन्नता. प्रसन्नता = Lack of illness.
गौसेवा से उत्पन्न प्रसन्नता को प्रसाद माना गया हैं and Not all dung, mutra, milk are प्रसाद.
If you want to see magical cure by गौमूत्र,गौमय (गोबर) & गौदुग्ध, begin गौसेवा.
Without selfless गौसेवा, गौमूत्र,गौमय (गोबर) & गौदुग्ध can not act like a प्रसाद. They may be full of physical benefits but can not be called प्रसाद.
Who is potent enough to receive प्रसादम्?
रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् ।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ।।
परंतु अपने अधीन किये हुए अन्त:करणवाला साधक अपने वश में की हुई, राग द्वेष से रहित इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण करता हुआ अन्त:करण की प्रसन्नता को प्राप्त होता है ।।
But the self-controlled practicant, while enjoying the various sense-objects through his senses, which are disciplined and free from likes and dislikes, attains placidity of mind.
गौ माँ से मशीन बन गयी…पर भक्तजन सोते रहे..मशीनसे मॉस बनी…फिर भी..सोते रहे…and they expect magical cure 🙁