सुषुप्त अवस्था में नित्य सुगंध सेवन करनेवालों की स्मृति शक्ति 226% अधिक सशक्त रहती है! जी पढ़ लो !
जी हाँ, यह तो एक हिन्दू नित्य पूजा का मात्र एक आयाम है! अष्टगंध विज्ञान !
वास्तव में नित्य पूजा, पंचमहाभूत के संतुलन हेतु ऋषिगण द्वारा दिया गया एक उत्तम कर्मकांड है! यदि 100 वर्ष स्वस्थ जीवन की जिजीविषा है तो पूजा कर्म से न चूकिए!
वैज्ञानिक लंबे समय से जानते हैं कि घ्राण क्षमता, या सूंघने की क्षमता का नुकसान, लगभग 70 न्यूरोलॉजिकल और मानसिक रोगों के विकास की भविष्यवाणी कर सकता है। इनमें अल्जाइमर और अन्य मनोभ्रंश, पार्किंसंस, सिज़ोफ्रेनिया और शराब शामिल हैं। कोविड के कारण गंध की हानि और उसके परिणामस्वरूप संज्ञानात्मक कमी के बीच संबंध के बारे में साक्ष्य सामने आ रहे हैं। शोधकर्ताओं ने पहले पाया है कि मध्यम मनोभ्रंश से पीड़ित लोगों को दिन में दो बार 40 अलग-अलग गंधों के संपर्क में लाने से उनकी याददाश्त और भाषा कौशल को बढ़ावा मिलता है, अवसाद कम होता है और उनकी घ्राण क्षमता में सुधार होता है।
शोध संदर्भ : https://news.uci.edu/2023/08/01/sweet-smell-of-success-simple-fragrance-method-produces-major-memory-boost/
================
गंधाष्टक या अष्टगंध आठ गंधद्रव्यों के मिलाने से बना हुआ एक संयुक्त गंध है जो पूजा में चढ़ाने और यंत्रादि लिखने के काम में आता है। आधुनिक अरोमा थेरपी को इस स्थिति में आने में, अष्टगंध का महत्व समझने में , और 100 वर्ष लग जायेगे! शोध निष्कर्ष के लिए प्रतीक्षा क्यूँ करनी ?
तंत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के लिये भिन्न-भिन्न गंधाष्टक का विधान पाया जाता है। तंत्र में पंचदेव (गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य) प्रधान हैं, उन्हीं के अंतर्गत सब देवता माने गए हैं; अतः गंधाष्टक भी पाँच यही हैं।
शक्ति के लिये-
चंदन, अगर, कपूर, चोर, कुंकुम, रोचन, जटामासी, कपि
विष्णु के लिये-
चंदन, अगर, ह्रीवेर, कुट, कुंकुम, उशीर, जटामासी और मुर;
शिव के लिये-
चंदन, अगर, कपूर, तमाल, जल, कुंकुम, कुशीद, कुष्ट;
गणेश के लिये-
चंदन, चोर, अगर, मृग और मृगी का मद, कस्तूरी, कपूर; अथवा
चंदन, अगर, कपूर, रोचन, कुंकुम, मद, रक्तचंदन, ह्रीवेर;
सूर्य के लिये-
जल, केसर, कुष्ठ, रक्तचंदन, चंदगन, उशीर, अगर, कपूर।