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चित्र में बच्चें कुछ क्रियाकलाप कर दिख रहे है । यह है उनका विज्ञान का वर्ग। वर्ग का प्रारंभ हुआ एक सामान्य निरक्षण से जो की चार दीवारों के मध्य शक्य नहीं ।
एक बच्चें ने देखा की थोड़ी सी आहट होने पर दाना चुगते कबूतर अचानक उड़कर कहीं चले जाते है और थोड़े समय में पुनः या जाते है । यह क्रम चलता रहता है ।
बस यहाँ से वर्ग का प्रारंभ। बात थी शरीर पोषण प्रणाली सिद्धांतों की ।
(1) खले कपोत न्याय (Law of identity and timing of absorption of nutrients in individual cell)
इस न्याय के प्रवर्तक आचार्य भाव प्रकाश है, अर्थात यह न्याय आचार्य भाव प्रकाश ने दिया है।
‘खले‘ शब्द का अर्थ है खलियान या खेत और ‘कपोत‘ का अर्थ है खूंटी, पक्षी।
जैसा कि पक्षी (कबूतर) को अपने पोषण के लिए अनाज के लिए खलियान में आना पड़ता है और वह दाना चुगता है। कबूतर का घोसला खेत से जितना दूर होगा उसे पोषण के लिए उतना ही सफर तय करना होगा, और इसी क्रम से ही धातुओं का पोषण शरीर में होता है।
यह समझने के बाद हम लग गए क्रियाकलाप में .. जैसे चित्र में प्रस्तुत है , हम सब अपना अपना खेत और उसकी सिंचाई पद्धति के प्रयोग में लग गए। और यह करते करते , समझ आया दूसरा पोषण प्रणाली न्याय
(2) केदारी कुल्य न्याय (transport of Ahara rasa)
इस न्याय के प्रवर्तक आचार्य सुश्रुत हैं, यानी यह न्याय आचार्य सुश्रुत द्वारा दिया गया है।
‘केदारी‘ शब्द का अर्थ है भूमि के छोटे टुकड़े और ‘कुलिया‘ का अर्थ है नाली।
कुलिया (नाली) और केदार (भूमि के छोटे टुकड़े) बनाने से खेत में फसलें सिंचित होती हैं।
केदार (भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े) क्रम से कुलिया (नालियों) द्वारा एक-एक करके सिंचित हो जाते हैं।
शरीर के अलग-अलग धातुओं को एक-एक करके इन नालियों के जरिए क्रम से पोषण मिलता है।
इससे न मात्र हम पोषण प्रणाली सिख रहे थे किन्तु साथ साथ भूमिति और भौतिक विज्ञान के नियम को भी प्रायोगिक रूप से आत्मसात कर रहे थे। वह भी बिना किसी गणितीय सूत्रों का आधार से ।
Nobel prize for Cell Transport System aka खले कपोत न्याय 😊
The Nobel Prize in Physiology or Medicine 2013 was awarded jointly to James E. Rothman, Randy W. Schekman and Thomas C. Südhof “for their discoveries of machinery regulating vesicle traffic, a major transport system in our cells”
खले कपोत न्याय = Right place and Right time transport of nutrients
https://www.nobelprize.org/prizes/medicine/2013/prize-announcement/
प्राथमिक शिक्षण से आयुर्वेद का लोप होने पर निश्चित बच्चें वयस्क आयु में आयुर्वेद को घृणा से देखेंगे। हमारा प्रयास संस्कृति के प्रति न मात्र शाब्दिक खोखला गौरव स्थापित करना है किन्तु एक अनुभव जन्य गौरव स्थिर करना है । बुद्धिनिष्ठ पीढ़ी का निर्माण!
बस बस इस तरह आगे और दो न्याय भी बातों बातों में सिख लेंगे।