Are we really free?

Nisarg Joshi

policy

workplace
Workplace

prachodayatspark

90 के दशक में भारत में आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण माँडल की नीति से चलने लगा । हर एक दशक में, मध्यम वर्ग की आय बढ़ती गई, सुख और संपत्ति भी बढ़ी। विलासिता बढ़ी। ऐसे वातावरण में जन्मे बच्चों को स्वाभाविक एक ही बात सार्वत्रिक गोचर हुई – पढ़ो, और ऐसे स्नातक बनो की महीने के 50 हजार से अधिक कमाओ। आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करो। क्या हम स्वतंत्र है ? सोचो !
एक संकेत –

  • यदि हम मार्केट की धुन पर नाच रहे है तो निश्चित हम स्वतंत्र नहीं है ।
  • यदि हम वैश्विक बाजार मात्र बन गए है तो निश्चित हम स्वतंत्र नहीं है ।
  • यदि हमारे पारिवारिक मूल्यों और परम्पराओ का नाश हुआ है तो निश्चित हम स्वतंत्र नहीं है ।
  • यदि हमारे प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग हुआ है तो निश्चित हम स्वतंत्र नहीं है ।
  • यदि हम, हमारा परिवार, हमारा मित्रगण मन से तनावग्रस्त है तो निश्चित हम स्वतंत्र नहीं है ।
  • यदि हमे मनुष्य जन्म सार्थक करने हेतु भी समय नहीं मिल रहा तो निश्चित हम स्वतंत्र नहीं है । सोचिए। शुभ प्रभात। 💐🪔🪔🤷‍♂️

Leave a Comment

The Prachodayat.in covers various topics, including politics, entertainment, sports, and business.

Have a question?

Contact us