आसन सिद्धि

Nisarg Joshi

Yoga

Asana
Asana

prachodayatyogasutra #yogicmonday

In Yoga, which Asana to begin with?
There is simple procedure mentioned in Bhagwad Geeta.

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्।।6.11।।
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये।।6.12।।
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः।
संप्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्।।6.13।।
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः।।6.14।।

शुद्ध भूमिपर, जिसपर क्रमशः कुश, मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं, जो न अत्यन्त ऊँचा है और न अत्यन्त नीचा, ऐसे अपने आसनको स्थिरस्थापन करके।
उस आसनपर बैठकर चित्त और इन्द्रियोंकी क्रियाओंको वशमें रखते हुए मनको एकाग्र करके अन्तःकरणकी शुद्धिके लिये योगका अभ्यास करे।
काया, शिर और ग्रीवाको सीधे अचल धारण करके तथा दिशाओंको न देखकर केवल अपनी नासिकाके अग्रभागको देखते हुए स्थिर होकर बैठे।
जिसका अन्तःकरण शान्त है, जो भय-रहित है और जो ब्रह्मचारिव्रतमें स्थित है, ऐसा सावधान योगी मनका संयम करके मेरेमें चित्त लगाता हुआ मेरे परायण होकर बैठे।


Old related note
पिछले दिनों, यहाँ लिखा था –

“हम कसरत के रूप में अगणित आसन किया करते है पर सिद्ध क्या हुआ?
मात्र पद्मासन भी सिद्ध हो जाए..तो भी जीवन सार्थक हो गया समझो !”

तो प्रश्न है की आसन सिद्धि अर्थात क्या?

उत्तर के लिए जाते है पतंजलि योग सूत्र के साधन पाद में ..

स्थिरसुखमासनम्।।2.46।।

जो शारीरिक स्थिति स्थायी और सुखी है वह आसन है |

शारीरिक स्थिति है |
स्थायी स्थिति है |
सुखद है |

आस्यते अनेन इति करणे ल्यूट् -> आसनम् -> बैठने के प्रकार -> स्थिर और सुखद बैठने के प्रकार !

भाष्यकारों ने ऋषियों और मुनियों द्वारा अनुभूत बैठने की विविध शैलियों को आसन रूप में गिनाए है – तद्यथा पद्मासनं वीरासनं भद्रासनं स्वस्तिकं दण्डासनं सोपाश्रयं पर्यङ्कं क्रौञ्चनिषदनं हस्तिनिषदनमुष्ट्रनिषदनं समसंस्थानं स्थिरसुखं यथासुखं चेत्येवमादीनि।

योग का एक अंग अर्थात आसन अर्थात स्थिर और सुखद स्थिति में बैठने के प्रकार !

सभी बैठने की स्थितियों में , अर्थात आसनों में, पद्मासन और सिद्धासन को सबसे अधिक महत्व दिया गया है | (संदर्भ गोरक्ष संहिता)

‘‘आसनेभ्य: समस्तेभ्यो द्वयमेव प्रशस्यते ।
एकं सिद्धासनं प्रोक्तं द्वितीयं कमलासनम्’’ ॥

आगे देखते है

प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम्।।2.47।।
शारीरिक व्यापार के अभाव में आसन सिद्ध हो सकता है | या फिर शेषनाग में समापन्न चित्त आसन सिद्ध कर सकता है | मेरी समझ से , देहाभिमान का नाश होने पर और अनंत का चिंतन करने पर आसन सिद्ध हो सकता है |

आसन सिद्ध होने का प्रमाण क्या?

ततो द्वंद्वानभिघातः।।2.48।।
तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः।।2.49।।

।।2.48।। शीतोष्णादिभिर्द्वंद्वैरासनजयान्नाभिभूयते।
।।2.49।। सत्यासने बाह्यस्य वायोराचमनं श्वासः कौष्ठ्यस्य वायोर्निःसारणं प्रश्वासः तयोर्गतिविच्छेद उभयाभावः प्राणायामः।

आसन सिद्ध होने पर साधक द्वंद्व से अभिभूत नहीं होता ! आसन सिद्धि होने पर ही श्वास-प्रश्वास की गति पर नियंत्रण कर सकते है |

इति आसन सिद्धि प्रक्ररणं | अस्तु

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