संस्कृत साधना : पाठ ७ (सिंहावलोकन & परिशोधन)

Śyāmakiśora Miśra

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नमः संस्कृताय मित्राणि !!
पिछले दो पाठों में हमने सकर्मक अकर्मक क्रियाओं के विषय समझाया। आशा करता हूँ कि यह विषय आपने हृदयंगम कर लिया है। आज कोई विशेष नियम की चर्चा न करके आपसे निवेदन करता हूँ कि आपने अब तक जो भी अध्ययन किया है उसका “सिंहावलोकन” कर लें। जैसे सिंह अपने मार्ग पर जाते हुए बीच बीच में रुककर पीछे मुड़कर देख लेता है, उसी प्रकार आपको भी चाहिए कि अधीत विषय को एक बार पीछे मुड़कर देखते चलें। इस प्रक्रिया को “सिंहावलोकन” कहते हैं। इससे अधीत विषय पूर्णरूपेण बुद्धि में स्थिर हो जाता है।

१) आज आपको शब्दरूपों के विषय में थोड़ा सा बतायेंगे। यह विषय बिल्कुल सरल है और अभ्यास पर आश्रित है। आपको बताया गया था कि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के रूप चलते हैं। सात विभक्तियाँ और तीन वचन। साथ ही प्रत्येक शब्द का लिंग भी निश्चित होता है कि वह पुँल्लिंग है अथवा स्त्रीलिंग अथवा नपुसंकलिंग।

२) सबसे पहले अकरान्त पुँल्लिंग ‘राम’ शब्द, आकारान्त स्त्रीलिंग ‘रमा’ शब्द और अकारान्त नपुसंकलिंग ‘पुस्तक’ शब्द के रूप बताते हैं।

३) संस्कृत भाषा में जितने भी अकारान्त (जिसके अन्त में अकार हो) पुँल्लिंग शब्द हैं , उन सबके रूप ‘राम’ शब्द की भाँति ही चलेंगे। आपको “रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे”– वाला श्लोक तो याद ही होगा , तो बस ये रूप याद करना एकदम आसान है।

विभक्ति/कारक एकवचन द्विवचन बहुवचन
१/कर्त्ता रामः रामौ रामाः
२/कर्म रामम् रामौ रामान्
३/करण रामेण रामाभ्याम् रामैः
४/सम्प्रदान रामाय रामाभ्याम् रामेभ्यः
५/अपादान रामात् रामाभ्याम् रामेभ्यः
६/सम्बन्ध* रामस्य रामयोः रामाणाम्
७/अधिकरण रामे रामयोः रामेषु
१/सम्बोधन हे राम ! हे रामौ ! हे रामाः !

४) आकारान्त स्त्रीलिंग ‘रमा’ की भाँति ही समस्त आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप चलेंगे-

रमा रमे रमाः
रमाम् रमे रमाः
रमया रमाभ्याम् रमाभिः
रमायै रमाभ्याम् रमाभ्यः
रमायाः रमाभ्याम् रमाभ्यः
रमायाः रमयोः रमाणाम्
रमायाम् रमयोः रमासु
हे रमे ! हे रमे ! हे रमाः

५) अकारान्त नपुसंकलिंग शब्दों के रूप आपको केवल दो विभक्तियों ‘प्रथमा’ और ‘द्वितीया’ के याद करने हैं, शेष सभी विभक्तियों में पुँल्लिंग की भाँति ही चलेंगे-

पुस्तकम् पुस्तके पुस्तकानि
पुस्तकम् पुस्तके पुस्तकानि
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वाक्य अभ्यास :
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आप शीतकाल में आइस्क्रीम क्यों खाते हैं ?
= भवान् शीतकाले पयोहिमं कथं खादति ?

मैं शीतकाल में गाय का दूध पीता हूँ।
= अहं शीतकाले धेनोः दुग्धं पिबामि।

तुम दोनो माघ मास में गंगा यमुना के संगम में नहाते हो।
= युवां माघमासे गङ्गायमुनयोः सङ्गमे मज्जथः।

मैं प्रयागराज में रहता हूँ।
= अहं प्रयागराजे वसामि।

तुम सब कहाँ रहते हो ?
= यूयं कुत्र निवसथ ?

मुदित राजस्थान के जयपुर नगर में रहता है।
= मुदितः राजस्थानस्य जयपुरनगरे वसति।

साकेत और अभय लखनऊ की लस्सी पीते हैं।
= साकेतः अभयः च लक्ष्मणपुरस्य दाधिकं पिबतः।

अरविंद केजरीवाल को कुमार विश्वास रायता देता है।
= अरविन्द-केजरीवालाय कुमारविश्वासः राज्यक्तं ददाति।

हम दोनों भरद्वाज का विमानशास्त्र पढ़ते हैं।
= आवां भरद्वाजस्य विमानशास्त्रं पठावः।

तुम दोनों भौतिकविज्ञान पढ़ते हो।
युवां भौतशास्त्रं पठथः।

हम सब चाणक्य का नीतिशास्त्र प्रतिदिन पढ़ते हैं।
वयं चाणक्यस्य नीतिशास्त्रं प्रतिदिनं पठामः।
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श्लोक :

*वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि
*पाण्डवानां धनञ्जयः।
*मुनीनाम् अप्यहं व्यासः
*कवीनाम् उशना कविः॥
(श्रीमद्भगवद्गीता १०।३७॥)

उपर्युक्त श्लोक में * चिह्न वाले शब्द षष्ठी बहुवचन के हैं। अन्य षष्ठी बहुवचन के रूप देखने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का दशम अध्याय पढ़िये।

॥शिवोऽवतु॥

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