संस्कृत साधना : पाठ २६ (तिङन्त-प्रकरण ११ :: लोट् लकार)

Śyāmakiśora Miśra

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नमः संस्कृताय !
पिछले पाठों में आपने लिङ् लकार के विषय में जाना। उसके दो भेदों- विधिलिङ् और आशीर्लिङ् के विषय में पृथक् पृथक् समझा। प्रयोग सम्बन्धी नियम भी जाने। आशा है कि आपने अच्छी प्रकार अभ्यास करके उन नियमों को बुद्धि में स्थिर कर लिया है। आज लोट् लकार के विषय में समझाते हैं। यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लकार है। आपने वृद्धों और सन्त महात्माओं अथवा किसी आदरणीय व्यक्ति को यह आशीर्वाद देते बहुत बार सुना होगा – “आयुष्मान् भव”। तो इसमें जो ‘भव’ शब्द है न, वह भू धातु के लोट् लकार मध्यमपुरुष एकवचन का ही रूप है। पूरे रूप देखिए –

भवतु* भवताम् भवन्तु
भव* भवतम् भवत
भवानि भवाव भवाम

*प्रथमपुरुष एकवचन और मध्यमपुरुष एकवचन में विकल्प से ‘भवतात्’ भी बनता है। किन्तु ‘भवतात्’ प्रयोग हमें तभी करना है जब आशीर्वाद देना हो। जैसे – “आयुष्मान् भव” अथवा “आयुष्मान् भवतात्”।

१) लोट् लकार उन सभी अर्थों में होता है जिनमें लिङ् लकार (दोनों भेद) का प्रयोग होता है। एक प्रकार से आप कह सकते हैं कि लोट् लकार लिङ् लकार का विकल्प है। आज्ञा देना, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना करना, निमन्त्रण देना, आशीर्वाद देना- इस सभी अर्थों में लोट् लकार का प्रयोग होता है।
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शब्दकोश :
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‘मित्र’ के पर्यायवाची शब्द –
१ ) मित्र ( नपुंसकलिंग )
२ ) सखिन् ( पुँल्लिंग )
३ ) सुहृद् ( पुँल्लिंग )

समान आयु वाले मित्र के लिए संस्कृत शब्द –
१ ) वयस्य ( पुँल्लिंग )
२ ) स्निग्ध ( पुँल्लिंग )
३ ) सवयस् ( पुँल्लिंग )
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वाक्य अभ्यास :
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वह मेरा मित्र हो जाए।
= असौ मम सुहृद् भवतु।

वे दोनों मित्र सफल हों।
= तौ वयस्यौ सफलौ भवताम्।

मेरा मित्र आयुष्मान् हो।
= मम सखा आयुष्मान् भवतु (भवतात्)।

तुम्हारे बहुत से मित्र हों।
= तव बहवः मित्राणि भवन्तु।

तू सफल हो।
= त्वं सफलः भव (भवतात्)।

इस समय तुम दोनों को यहाँ होना चाहिए।
= एतस्मिन् समये युवाम् अत्र भवतम्।

तुम सब वर्चस्वी होओ।
= यूयं वर्चस्विनः भवत।

मैं कहाँ होऊँ ?
= अहं कुत्र भवानि ?

हम दोनों उस मित्र के घर होवें ?
= आवां तस्य मित्रस्य गृहे भवाव ?

हम सब यहाँ विराजमान हों।
= वयम् अत्र विराजमानाः भवाम।

हम सभी जीवों के मित्र हों।
= वयं सर्वेषां जीवानां मित्राणि भवाम।
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श्लोक :
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तस्मात् त्वम् उत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वम् एव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥
( श्रीमद्भगवद्गीता ११।३३)

उत्तिष्ठ = खड़े हो जाओ।[उत् + स्था(तिष्ठ्) लोट् मध्यमपुरुष एकवचन]
लभस्व = प्राप्त करो [लभ् धातु, लोट् लकार मध्यमपुरुष एकवचन]
भुङ्क्ष्व = भोगो [भुज् धातु, लोट् लकार मध्यमपुरुष एकवचन]
भव = ? ( आप जानते ही हैं !)

॥ शिवोऽवतु ॥

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