संस्कृत साधना : पाठ २३ (तिङन्त-प्रकरण ८ :: विधिलिङ् लकार अभ्यास)

Śyāmakiśora Miśra

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भू धातु, विधिलिङ् लकार

भवेत् भवेताम् भवेयुः
भवेः भवेतम् भवेत
भवेयम् भवेव भवेम

शब्दकोश :
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‘रोगहीनता’ के पर्यायवाची शब्द –
१ ) अनामयम् ( नपुंसकलिंग )
२ ) आरोग्यम् ( नपुंसकलिंग )

रोग दूर करना –
१ ) चिकित्सा ( स्त्रीलिंग )
२ ) रुक्प्रतिक्रिया ( स्त्रीलिंग )

*ज्ञातव्य : आयुर्वेद के दो विभाग होते हैं। एक तो ‘निदान’ जिसमें रोगों की पहचान करने के लिए उनके लक्षणों का वर्णन होता है, जैसे ‘माधवनिदानम्’ नामक ग्रन्थ इसी प्रकार का ग्रन्थ है। दूसरा विभाग है ‘चिकित्सा’ जिसमें विभिन्न रोगों के लिए विभिन्न औषधों की व्यवस्था होती है। भावप्रकाश में लिखा है “या क्रिया व्याधिहरणी सा चिकित्सा निगद्यते” अर्थात् जो क्रिया जो व्याधि का हरण करे उसे चिकित्सा कहते हैं । और भैषज्यरत्नावली नामक ग्रन्थ में तीन प्रकार की चिकित्सा बतायी गयी है-
आसुरी मानुषी दैवी चिकित्सा त्रिविधा मता।
शस्त्रैः कषायैः लोहाद्यैः क्रमेणान्त्या सुपूजिता॥

जिसमें शस्त्रों से चीर फाड़ (operation) हो – आसुरी
विभिन्न रसों के माध्यम से – मानुषी
पारे आदि धातुओं से – दैवी

दवा के लिए संस्कृत शब्द –
१ ) भेषजम् ( नपुंसकलिंग )
२ ) औषधम् ( नपुंसकलिंग )
३ ) भैषज्यम् (नपुंसकलिंग )
४ ) अगदः ( पुँल्लिंग )
५ ) जायुः ( पुँल्लिंग )

‘रोग’ के पर्यायवाची शब्द –
१ ) रुज् ( स्त्रीलिंग )
२ ) रुजा (स्त्रीलिंग )
३ ) उपतापः ( पुँल्लिंग )
४ ) रोगः ( पुँल्लिंग )
५ ) व्याधिः ( पुँल्लिंग )
६ ) गदः ( पुँल्लिंग )
७ ) आमयः ( पुँल्लिंग )

‘वैद्य’ के पर्यायवाची शब्द –
१ ) रोगहारी ( पुँल्लिंग )
२ ) अगदङ्कारः ( पुँल्लिंग )
३ ) भिषक् ( पुँल्लिंग )
४ ) वैद्यः ( पुँल्लिंग )
५ ) चिकित्सकः ( पुँल्लिंग )
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वाक्य अभ्यास :
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हमारे देश में निपुण वैद्य होवें।
= अस्माकं देशे निपुणाः वैद्याः भवेयुः।

कोई भी वैद्य धूर्त न हो ।
= कः अपि चिकित्सकः धूर्तः न भवेत्।

सभी वैद्य धार्मिक होवें।
सर्वे अपि अगदङ्काराः धार्मिकाः भवेयुः।

तू दक्ष वैद्य होवे।
= त्वं दक्षः भिषक् भवेः ।

तुम दोनों लोभी वैद्य न होओ।
= युवां लोलुपौ चिकित्सकौ न भवेतम् ।

तुम सुवर्णभस्म खाकर पुष्ट होओ।
= त्वं काञ्चनभस्मं भुक्त्वा पुष्टः भवेः।

यह दवा खाकर तो दुर्बल भी बलवान् हो जाए।
= एतत् औषधं भुक्त्वा दुर्बलः अपि बलवान् भवेत्।

यह दवा तेरे लिए पुष्टिकर होवे।
= एतत् भेषजं तुभ्यं पुष्टिकरं भवेत्।

सभी रोगहीन होवें।
= सर्वे अपि अनामयाः भवेयुः।

लगता है, इस चिकित्सालय में अच्छी चिकित्सा होगी।
= मन्ये , अस्मिन् चिकित्सालये सुष्ठु रुक्प्रतिक्रिया भवेत् ।

ये दवाएँ इस रोग के लिए पर्याप्त होनी चाहिए।
= एतानि भैषज्यानि एतस्मै उपतापाय अलं भवेयुः।

हम योगी हों।
= वयं योगिनः भवेम।

जिससे रोग न हों।
= येन रुजाः न भवेयुः।

हम दोनों सदाचारी होवें।
= आवां सदाचारिणौ भवेव।

जिससे रोग न हों।
= येन आमयाः न भवेयुः।

मैं आयुर्वेद की बात मानने वाला होऊँ।
= अहं आयुर्वेदस्य वचनकरः भवेयम्।

तुम दोनों इस रोग से शीघ्र मुक्त होओ।
= युवाम् अस्मात् गदात् शीघ्रं मुक्तौ भवेतम् ।

हे भगवान् ! मैं इस रोग से जल्दी छूट जाऊँ।
= हे भगवन् ! अहं अस्मात् आमयात् शीघ्रं मुक्तः भवेयम्।
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श्लोक :
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इस श्लोक में अर्जुन ‘भवेत्’ का प्रयोग किस अर्थ में कर रहे हैं, सोचकर बताइये –

यदि माम् अप्रतीकारम् अशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्राः रणे हन्युः तत् मे क्षेमकरं भवेत् ॥
( श्रीमद्भगवद्गीता १।४६ )

॥ शिवोऽवतु ॥

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