संस्कृत साधना : पाठ १९ (तिङन्त-प्रकरण ५ :: विशेष नियम)

Śyāmakiśora Miśra

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नमः संस्कृताय !
पिछले पाठ में आपने लुङ् लकार के प्रयोग सम्बन्धी नियम जाने। लुङ् लकार सामान्य भूतकाल के लिए प्रयुक्त होता है। आशा करता हूँ कि आपने इस लकार से सम्बन्धित नियमों को बुद्धि में स्थिर कर लिया है। आज लङ् लकार की चर्चा करते हैं। यह भी भूतकाल के लिए प्रयुक्त होता है, किन्तु निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

१) लङ् लकार अनद्यतन भूतकाल के लिए प्रयुक्त किया जाता है। ‘अनद्यतन भूतकाल’ अर्थात् ऐसा भूतकाल जो आज से पहले का हो।

जैसे –
वह कल हुआ था = सः ह्यः अभवत्।
वे दोनों परसों हुए थे = तौ परह्यः अभवताम्।
वे सब गतवर्ष हुए थे = ते गतवर्षे अभवन्।

जहाँ आज के भूतकाल की बात कही जाए वहाँ लङ् लकार का प्रयोग नहीं करना।

२) यदि लङ् लकार के रूप के साथ “मा स्म” का प्रयोग कर दिया जाय तो यह निषेध अर्थ वाला हो जाता है। जैसे – दुःखी मत होओ = खिन्नः मा स्म भवः।
ध्यान रहे जब “मा स्म” का प्रयोग करेंगे तो लङ् लकार के रूप के अकार का लोप हो जाएगा।

प्राचीन ग्रन्थों में “मा स्म” के साथ लुङ् लकार का भी प्रयोग देखा जाता है, जैसे – “क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ” (श्रीमद्भगवद्गीता २.३)

भू धातु लङ् लकार

अभवत् अभवताम् अभवन्
अभवः अभवतम् अभवत
अभवम् अभवाव अभवाम

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शब्दकोश :
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पैर के लिए संस्कृत शब्द –

१) पादः ( पुँल्लिंग )
२) पद् ( पुँल्लिंग )
३) अङ्घ्रिः ( पुँल्लिंग )
४) चरणः/चरणम् (पुँल्लिंग/नपुंसकलिंग)

‘टखने’ (जो एड़ी के ठीक ऊपर होते हैं) के नाम –

१) घुटिका (स्त्रीलिंग)
२) गुल्फः/गुल्फम् (पुँल्लिंग/नपुंसकलिंग)
ये सदैव द्विवचन में प्रयुक्त होते हैं क्योंकि ये दो दो होते हैं।

एड़ी = पार्ष्णिः (पुँल्लिंग)

घुटना-
१) जानुः/जानु (पुँल्लिंग/नपुंसकलिंग )
२) ऊरुपर्वन् (पुँल्लिंग और नपुंसकलिंग )
३) अष्ठीवत् (पुँल्लिंग और नपुंसकलिंग )

ह्यः = बीता हुआ कल
परह्यः = बीता हुआ परसों
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वाक्य अभ्यास :
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कल मेरे पैर बहुत थक गए थे।
= ह्यः मम चरणौ भूरि श्रान्तौ अभवताम्।

परसों मेरे टखनों में बहुत पीड़ा हुई।
= परह्यः मम गुल्फयोः महती पीडा अभवत्।

इस कारण तुम भी दुःखी हुए।
= अनेन कारणेन त्वम् अपि दुःखी अभवः।

अब दुःखी मत होओ।
= सम्प्रति दुःखी मा स्म भवः।

तुम दोनों बीते वर्ष प्रथमश्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे।
= युवां व्यतीते वर्षे प्रथमश्रेण्याम् उत्तीर्णौ अभवतम्।

मैं तो अनुत्तीर्ण हो गया था भाई !!
= अहं तु अनुत्तीर्णः अभवं भ्रातः !!

तुम सब प्रसन्न हुए थे,
= यूयं प्रसन्नाः अभवत,

हम सब दुःखी हुए थे।
= वयं खिन्नाः अभवाम।

मेरे दोनों घुटनों में बहुत दर्द हुआ।
= मम जान्वोः महती पीडा अभवत्।

परसों मेरे गायन से सब लोग प्रसन्न हुए थे।
= परह्यः मम गायनेन सर्वे जनाः प्रसन्नाः अभवन्।

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श्लोक :
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अभूत् सीतापती रामः
अभूतां तौ सुदम्पती।
भूयोऽभूवन् महामोदाः
मा भूः खिन्नः प्रसीद च॥ (स्वस्य)

राम सीता के पति हुए, वे दोनों सुन्दर दम्पती हुए। बहुत महान् आमोद प्रमोद हुए। तुम दुःखी मत होओ प्रसन्न होओ।

इस श्लोक में भू धातु के प्रथम पुरुष के सारे रूप और मध्यम पुरुष एकवचन का रूप है। बहुधा इन्हीं रूपों का प्रयोग होता है, स्मरण कर लीजिए।

॥ शिवोऽवतु ॥

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