संस्कृत साधना : पाठ १७ (तिङन्त-प्रकरण ३ :: विशेष नियम)

Śyāmakiśora Miśra

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नमस्कार मित्रों !
पिछले पाठ में आपने तिङ् प्रत्ययों और आत्मनेपद परस्मैपद के विषय में जाना। कौन सी धातुएँ आत्मनेपदी होती है और कौन परस्मैपदी अथवा उभयपदी, यह आप तभी जान पायेंगे जब आप धातुपाठ का अध्ययन करेंगे। किन्तु जब हम आपको धातुओं के रूपों का अभ्यास करायेंगे तब आपको उस धातु के विषय में यह सभी बातें बताते चलेंगे। आज से हम आपको दसों लकारों के प्रयोग से सम्बन्धित नियमों के विषय में बतायेंगे। सबसे पहला है लट् लकार। इसके विषय में निम्नलिखित नियम स्मरण रखिए-

१) लट् लकार वर्तमान काल में होता है। क्रिया के आरम्भ से लेकर समाप्ति तक के काल को वर्तमान काल कहते हैं। जब हम कहते हैं कि ‘रामचरण पुस्तक पढ़ता है या पढ़ रहा है’ तो पढ़ना क्रिया वर्तमान है अर्थात् अभी समाप्त नहीं हुई। और जब कहते हैं कि ‘रामचरण ने पुस्तक पढ़ी’ तो पढ़ना क्रिया समाप्त हो चुकी अर्थात् यह भूतकाल की क्रिया हो गयी।

२) यदि लट् लकार के रूप के साथ ‘स्म’ लगा दिया जाय तो लट् लकार वाले रूप का प्रयोग भूतकाल के लिए हो जायेगा। जैसे – ‘पठति स्म’ = पढ़ता था।

३) सर्वप्रथम हम आपको ‘भू’ धातु के रूप बतायेंगे। ‘भू’ धातु का अर्थ है ‘होना’ , किसी की सत्ता या अस्तित्व को बताने के लिए इस धातु का प्रयोग होता है। यह धातु परस्मैपदी है अतः इसमें तिङ् प्रत्ययों में से प्रथम नौ प्रत्यय लगेंगे। देखिए –

प्रथमपुरुष भू+ तिप् भू+ तस् भू+ झि
मध्यमपुरुष भू+सिप् भू+थस् भू+ थ
उत्तमपुरुष भू+मिप् भू+वस् भू+मस्

व्याकरणशास्त्र की रूपसिद्धि प्रक्रिया को न बताते हुए आपको सिद्ध रूपों को बतायेंगे। रूपसिद्धि की प्रक्रिया थोड़ी जटिल है। लट् लकार में निम्नलिखित रूप बनेंगे, पुरुष वचन आदि पूर्ववत् रहेंगे-

भवति भवतः भवन्ति
भवसि भवथः भवथ
भवामि भवावः भवामः

इन रूपों का वाक्यों में अभ्यास करने पर आपको उपर्युक्त नियम अभ्यस्त हो जायेंगे।
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शब्दकोश :
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पुत्र के पर्यायवाची शब्द –
१) आत्मजः
२) तनयः
३) सूनुः
४) सुतः
५) पुत्रः

* उपर्युक्त शब्दों को यदि स्त्रीलिंग में बोला जाए तो इनका अर्थ ‘पुत्री’ हो जाता है। जैसे – आत्मजा, सूनू , तनया, सुता, पुत्री । ‘दुहितृ’ माने भी पुत्री होता है।

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वाक्य अभ्यास :
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जब मैं यहाँ होता हूँ तब वह दुष्ट भी यहीं होता है।
= यदा अहम् अत्र भवामि तदा सः दुष्टः अपि अत्रैव भवति।

जब हम दोनों विद्यालय में होते हैं…
= यदा आवां विद्यालये भवावः …

तब तुम दोनों विद्यालय में क्यों नहीं होते हो ?
= तदा युवां विद्यालये कथं न भवथः ?

जब हम सब प्रसन्न होते हैं तब वे भी प्रसन्न होते हैं।
= यदा वयं प्रसन्नाः भवामः तदा ते अपि प्रसन्नाः भवन्ति।

प्राचीन काल में हर गाँव में कुएँ होते थे।
= प्राचीने काले सर्वेषु ग्रामेषु कूपाः भवन्ति स्म।

सब गाँवों में मन्दिर होते थे।
= सर्वेषु ग्रामेषु मन्दिराणि भवन्ति स्म।

मेरे गाँव में उत्सव होता था।
= मम ग्रामे उत्सवः भवति स्म।

आजकल मनुष्य दूसरों के सुख से पीड़ित होता है।
= अद्यत्वे मर्त्यः परेषां सुखेन पीडितः भवति।

जो परिश्रमी होता है वही सुखी होता है।
= यः परिश्रमी भवति सः एव सुखी भवति।

केवल बेटे ही सब कुछ नहीं होते…
= केवलं पुत्राः एव सर्वं न भवन्ति खलु…

बेटियाँ बेटों से कम नहीं होतीं।
= सुताः सुतेभ्यः न्यूनाः न भवन्ति।

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श्लोक :
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अन्नात् भवन्ति भूतानि
पर्जन्यात् अन्नसम्भवः।
यज्ञात् भवति पर्जन्यः
यज्ञः कर्म समुद्भवः ॥

(श्रीमद्भगवद्गीता ३.१४)

॥ शिवोऽवतु ॥

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